यह कहानी बहुत दिलचस्प और भावनात्मक है। इसमें थोड़ा रहस्य भी है और बचपन की मासूम यादें भी

शीर्षक: मेरी कहानी – मैं और मेरा परिवार

मैं और मेरा परिवार एक संस्था के परिसर में रहा करते थे। उस परिसर में दो बड़ी इमारतें थीं। एक इमारत में स्कूल चलता था और दूसरी इमारत के ग्राउंड फ्लोर और पहले माले पर अस्पताल था। उसी इमारत की दूसरी मंज़िल पर लड़कियों का हॉस्टल था। मेरे पापा उस अस्पताल में सुबह 9 से शाम 4 बजे तक काम करते थे, और मेरी मम्मी उस हॉस्टल की वार्डन थीं।

चूंकि वह गर्ल्स हॉस्टल था, इसलिए मैं और पापा वहां रात को नहीं रहते थे। हम दोनों ने पास ही की गली नंबर 2 में एक कमरा किराये पर ले रखा था और वहीं सोते थे।

अस्पताल में मेरा एक अच्छा दोस्त था, जो नीचे ही कहीं रहता था। जब भी मुझे रात को रुकना होता, हम दोनों किसी भी खाली कमरे में सो जाया करते। कभी-कभी हम एक्स-रे रूम में, तो कभी सोनोग्राफी वाले कमरे में। गर्मियों में तो हम अस्पताल के खुले कंपाउंड में ही अपनी चादर बिछा कर सो जाते थे।

एक रात मुझे अचानक पायल की आवाज़ सुनाई दी। पहले तो लगा कि मुझे वहम हुआ है, पर अगली रात फिर वही आवाज़ सुनाई दी। मैंने अपने दोस्त को जगाया और पूछा, “तुझे भी कुछ सुनाई दे रहा है?” उसने भी कहा, “हां यार, मुझे भी सुनाई दे रहा है।”

हमने कई दिनों तक लोगों से पूछा कि क्या उन्हें भी रात में पायल की आवाज़ सुनाई देती है। सबका जवाब ‘नहीं’ था। ऐसे ही कुछ दिन बीते। कभी आवाज़ आती, कभी नहीं।

फिर एक दिन परिसर के अंदर एक मंदिर बनना शुरू हुआ। जिस जगह मंदिर बनना था, वहाँ एक अजीब सा कांटेदार पेड़ था। वह पेड़ बहुत ऊँचा था, लगभग तीन मंज़िल जितना। उसे कटवाना ज़रूरी था। मंदिर के पास ही एक बड़ा घर था जहाँ से मज़दूरों को रस्सी बांधने के लिए भेजा गया।

मैं और मेरा दोस्त भी उस घर में गए। तभी अचानक फिर वही पायल की आवाज़ आने लगी। हमने एक-दूसरे की ओर देखा और मजदूर भाई से पूछा, “भैया, आपको भी कुछ सुनाई दे रहा है?” उन्होंने कहा, “हां, आ रही है।”

हम सबने देखा कि कोने में एक झंडा लगा था और उसमें दो घुंघरू बंधे हुए थे। जब भी हवा तेज़ चलती, वे घुंघरू बजने लगते। दिन में जब अस्पताल और स्कूल चलते थे, तो वह आवाज़ दब जाती थी। लेकिन रात को जब सब शांत होता, और हवा चलती, तो वही घुंघरू बजते और हमें लगता कि कोई पायल पहन कर चल रहा है।

आखिर में हमने उन घुंघरुओं को झंडे से निकाल लिया और अपनी चाबी के की-चेन में लगा लिया। आज भी जब वो घुंघरू देखते हैं, तो वो आवाज़ और वो दिन याद आ जाते हैं — और चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।

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